1857 Ka Pratham Svatantray Samar Aur Hindi Kavya INR 556.00
Book summary
सन् 1857 की प्रथम जनक्रान्ति से समर्पित अथाह सामग्री और अनेक ग्रन्धों का सारभूत नवनीत इस एक ग्रन्थ में जागर में सागर' की तरह समेट कर रख दिया गया है । विषय के साथ पूरा न्याय करने वाले इस ग्रन्थ में बादशाह बहादुरशाह ज़फ़र है उनके परिवार और काव्य के बरि में हिन्दी में पाती बार अछूती सामग्री पेश की नाई है । इस ग्रन्थ से हिन्दी के प्रतीत संसार को ज्ञान की अभूतपूर्व रश्मियों में पावन गंगा स्नान कांसा सुख तो मिलेगा ही, साथ ही इस शब्दन्ताधना से देशभक्ति और राष्टीय कर्त्तव्यों के प्रति उन्मुख हो कर भऱरतमात्ता के लिए मर मिटने की ललक जगा कर यह ग्रन्थ मानो सोने पर सुहागे का-सा काम करता है । कविहृदय डॉ॰ भावुक की कारयित्री और भावयित्री प्रतिभा दोनों ही इस प्रासंगिक और सामयिक महत्त्व के समीक्षा-ग्रन्थ में युगपत् विद्यमान है । देशभक्ति का वेश्चिक रस छलकने वाला यह ग्रंथ प्रत्येक निजी, सार्वजनिक और शैक्षणिक पुस्तकालयों के लिए संग्रहणीय कहा जा सकता है । यह प्रबुद्ध लेखक हर देशभक्त को अपने अन्तरतम में हर समय यहीं शेर कहते हुए पाता है - "साथियों ! बुझने न पाए ये मंज़िलें दारो-रसन, मेरे ही सर की ज़रूरत है, तो सर देता हूँ मैं !"