*GET FREE SHIPPING ON ALL PRE-PAID ORDER OF INR 1000.00 & ABOVE.
*Applicable only for India. Price may be revised by the publisher.
*Cash-on-Delivery Standard and Premium pincode list. Please check your pincode in given standard list first before order.
Hindi Natak INR 636.00
Book summary
साहित्य की अन्य विधाओ ने भी मनुष्य को देवदारु की तरह ऊँचा उठाया लेकिन नाटक ने उसके भीतरी द्धंद्ध को खासतौर से तराशा , उसे फैलाने से रोका , उसे बांधा , काल - धार पर चढ़ाया,मथा, निचोड़ा, जोड़ा, रस्सी सा बंटा और संघर्ष-जिजीविषा की आधिकारिक कथा का नायक-खलनायक बना दिया । जीवन के स्थायी भाव को सुरक्षित-संरक्षित रखने के लिए कालानुरूप अपनी भंगिमाये निरन्तर बदली और आज बीज से वट बनकर भी अपनी शाखाओ - प्रशाखाओ का विस्तार कर रहा है । नाट्य-साहित्य की विशेषज्ञ , अध्येता, अनुसंधात्री डॉ॰ वीणा गौतम ने इसी चक्रधारी समय की बहुत बारीक कताई की है ।
Book Details
हिंदी नाटक; रंगनुशासन एवं प्रायोगिक नवोन्मेश ( सन् 1947-2010
साहित्य की अन्य विधाओ ने भी मनुष्य को देवदारु की तरह ऊँचा उठाया लेकिन नाटक ने उसके भीतरी द्धंद्ध को खासतौर से तराशा , उसे फैलाने से रोका , उसे बांधा , काल - धार पर चढ़ाया,मथा, निचोड़ा, जोड़ा, रस्सी सा बंटा और संघर्ष-जिजीविषा की आधिकारिक कथा का नायक-खलनायक बना दिया । जीवन के स्थायी भाव को सुरक्षित-संरक्षित रखने के लिए कालानुरूप अपनी भंगिमाये निरन्तर बदली और आज बीज से वट बनकर भी अपनी शाखाओ - प्रशाखाओ का विस्तार कर रहा है । नाट्य-साहित्य की विशेषज्ञ , अध्येता, अनुसंधात्री डॉ॰ वीणा गौतम ने इसी चक्रधारी समय की बहुत बारीक कताई की है ।
Book Details
Hindi Natak : Ranganushasan Evam Prayogic Navonmesh ( San 1947-2010 ) (Hardback)
Author
Veena Gautam
KKBN #
6009-AB-Q204
Year
2011
Language
English
Binding
Hardcover
Related Books
Hindi Natak : Ranganushasan Evam Prayogic Navonmesh ( San 1947-2010 ) (Hardback) Book Review
Testimonials
We accept all major Credit/Debit/ATM Cards, COD (Cash-on-Delivery), Cheque/Demand Draft, Netbanking, Paypal and also ensures that your online purchase must be troublefree and secure.
For assistance please contact our Support 011 23285079 Monday to Saturday 10:00 am to 7:00 pm (Except Holidays)
or send e-mail to ts@kkpublications.com