Buniyaadi Shiksha INR 556.00
Book summary
इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत ने प्राचीन काल से ही विश्व के बौद्धिक जागरण में अहम भूमिका अदा की और महात्मा गाँधी ने आधुनिक युग में भारत की इसी परम्परा का निर्वहन किया। प्रस्तुत पुस्तक में महात्मा गाँधी के कार्य का मूल्यांकन एक राजनेता से इतर एक शिक्षाविद के रूप में करने का प्रयास किया गया है। उन्हीं के शब्दों में “मुझे भय है कि बहुत से विधार्थी शिक्षा के उद्देश्य पर विचार ही नहीं करते। पढ़ने का चलन है, इसलिए वे स्कूल जाते हैं। कुछ आजीविका अथवा नौकरी के हेतु से जाते हैं। मेरी तुच्छ बुद्धि के अनुसार शिक्षा को आजीविका का साधन समझना नीच प्रवृति कही जायेगी। आजीविका का साधन शरीर है और पाठशाला चरित्र निर्माण की जगह है। उसे शरीर की जरूरते पूरी करने का साधन समझना चमड़े की जरा सी रस्सी के लिए भैंस मारने के बराबर है।” महात्मा ने यह तो बताया है कि शिक्षा “कैसे” दी जाये साथ ही साथ उन्होंने इस बात पर भी पूरा जोर दिया कि शिक्षा “कैसे” दी जाये। उल्लेखनीय है कि शिक्षा नीति का यह चिंतन उन्हें विश्व के दूसरे शिक्षाविदों से अलग खड़ा करता है। उनके अनुसार “हम मनुष्य बने यह पहली शिक्षा है, मनुष्य ही अक्षर ज्ञान के योग्य है जो लोग मनुष्यत्व खो बैठते हैं उन्हें शिक्षित कर आप क्या पायेंगे ? मात्र पुस्तकीय ज्ञान से मनुष्यत्व नहीं आता।” निःसंदेह उनकी बुनियादी शिक्षा पद्धति न केवल श्रम, मातृभाषा और सहजता को दिये जाने वाले महत्त्व के कारण विशिष्ट है बल्कि स्वावलंबन की नयी परिभाषा गढ़ने के परिप्रेक्ष्य में यह अद्वितीय है।