Shodh Pravidhi Aur Prakriya INR 320.00
Book summary
यह मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है कि उसके मन में प्रत्येक क्षण किसी-न-किसी नवीन जिज्ञासा का जन्म होता है और वह उस जिज्ञासा को तृप्त करने और उसके समाधान के लिए शोध की ओर प्रवृत्त होता है। शोध प्रक्रिया सरल प्रक्रिया नहीं है इसीलिए शोध की इस प्रक्रिया से परिचित होने के लिए शोध-तंत्र का ज्ञान होना प्रत्येक शोधार्थी के लिए आवश्यक है। विशेष रूप से यह तंत्र साहित्य के शोधार्थी को सम्बल प्रदान करता है। इससे उसका शोध-पथ सुगम बन जाता है। शोध-कार्य में व्यक्ति चैतन्य के संस्पर्श का महत्त्व होते हुए भी उसे अनुशासित करवाने वाला शोध-तंत्र ही है। इस तंत्र का अनुसरण करते हुए जहाँ एक उत्तम और सुसंगठित शोध-प्रबन्ध के निर्माण में सहायता मिल सकती है, वहाँ उसमें आ सकने वाली अनेक त्रुटियों से भी बचा जा सकता है।पिछले कुछ वर्षों में प्रत्येक क्षेत्र की भाँति उत्तर-आधुनिकतावादी दौर के चलते हिन्दी शोध में भी अपेक्षित परिवर्तन भी हुआ है। जहाँ शोध के क्षेत्रों का विस्तार हुआ है वहीं शोध के लिए सामग्री संकलन के लिए भी संसाधनों की वृद्धि हुई है। वैश्वीकरण के कारण विभिन्न विचारधाराओं और संस्कृतियों ने भी हिन्दी साहित्य को प्रभावित किया है। इन विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी में तीव्र गति से शोध कार्य सम्पन्न हो रहा है। लेकिन शोधार्थियों को शोध की विधि का अभीष्ट ज्ञान अभी तक उपलब्ध नहीं हो पाया है। इन्हीं सब को ध्यान में रखकर ही शोध की कसौटी का निर्धारण करते हुए इस पुस्तक का प्रणयन किया है। यह पुस्तक साहित्य में शोध कार्य करने वाले शोधार्थियों के लिए शोध की पद्धति और प्रक्रिया का सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान कराती है। इस पुस्तक के माध्यम से शोधार्थी अपने शोध कार्य को निश्चित दिशा की ओर ले जा सकता है। साहित्य के क्षेत्र में शोध की बढ़ती सम्भावनाओं के कारण यह पुस्तक शोधार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।